लेखनी कविता -दोहे - फ़िराक़ गोरखपुरी

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दोहे / फ़िराक़ गोरखपुरी नया घाव है प्रेम का जो चमके दिन-रात होनहार बिरवान के चिकने-चिकने पात. यही जगत की रीत है, यही जगत की नीत मन के हारे हार है, ...

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